लताकस्तूरी
लता कस्तूरी का पौधा पूर्ण रूप से रोमो से आवृत होता है। इसके पुष्प भिण्डी के पुष्प के समान, बड़े, पीत वर्ण के, मध्य में बैंगनी वर्ण के, बिन्दु से होते हैं। इसके फल रोमों से युक्त तथा अग्र भाग पर नुकीले होते हैं। इसके बीज कृष्ण अथवा धूसर भूरे वर्ण के तथा कस्तूरी गंधी होते हैं।
परिचय
भारत के समस्त उष्णकटिबंधीय प्रदेशों विशेषतया महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश तथा उत्तराखण्ड के कई स्थानों पर इसकी खेती की जाती है। इसके पौधे देखने में भिण्डी के समान होते हैं। लता कस्तूरी का पौधा पूर्ण रूप से रोमो से आवृत होता है। इसके पुष्प भिण्डी के पुष्प के समान, बड़े, पीत वर्ण के, मध्य में बैंगनी वर्ण के, बिन्दु से होते हैं। इसके फल रोमों से युक्त तथा अग्र भाग पर नुकीले होते हैं। इसके बीज कृष्ण अथवा धूसर भूरे वर्ण के तथा कस्तूरी गंधी होते हैं।
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लताकस्तूरी की कई प्रजातियां पाई जाती है जो आकार प्रकार में इसके समान दिखाई देती है परन्तु यह गुणों में अल्प होती है। उपरोक्त वर्णित मुख्य लताकस्तूरी के अतिरिक्त निम्नलिखित दो प्रजातियों का प्रयोग भी चिकित्सा में किया जाता है।
वानस्पतिक नाम : Abelmoschus moschatus Medik. (एबेलमोस्कस् मोस्कैटस) Syn-Hibiscus abelmoschus Linn. अंग्रेज़ी नाम : Musk-mallow (मस्क मैलो) संस्कृत-लताकस्तूरी; हिन्दी-लताकस्तूरी, कस्तूरीदाना, मुष्कदाना; उर्दु-मुष्कादानह (Mushkadanah); कन्नड़-कडुकस्तूरी (Kadu kastoori); गुजराती-मूशकदाना (Mushakdana)लता कस्तुरी (Lata kasturi);
लता कस्तूरी के फायदे (benefits) :
नेत्र विकार-लता कस्तूरी के बीजों को पीसकर नेत्रों में लगाने से नेत्र विकारों का शमन होता है।
लता कस्तूरी के फल का हिम बनाकर गरारा करने से मुख की शुद्धि होती है, भोजन के प्रति अरुचि नष्ट होती है तथा मुख सुंधित होता है।
कण्ठ विकार में फायदेमंद है (Benefits for throat infection) : लता कस्तूरी के 1-2 बीजों को चूसने से कंठ विकारों का शमन होता है।
खाँसी से आराम दिलाती है (Benefits for Cough)-लता कस्तूरी पञ्चाङ्ग को पीसकर छाती पर लेप करने से खाँसी में लाभ होता है।
लता कस्तूरी बीज को दूध के साथ पीसकर कण्डू प्रभावित भाग पर लगाने से कण्डू का शमन होता है।
5-10 मिली लता कस्तूरी पत्र-स्वरस में शहद मिलाकर पिलाने से खाँसी का शमन होता है।
लता कस्तूरी के बीजों का फाण्ट बनाकर 25-30 मिली मात्रा में पिलाने से तमक श्वास, तंत्रिका दौर्बल्य, योषापस्मार तथा अन्य तंत्रिका विकारों में लाभ होता है।
मूत्रकृच्छ्र-5 मिली लता कस्तूरी मूल तथा पत्र-स्वरस को पिलाने से मूत्रकृच्छ्र में लाभ होता है।
ज्वर से आराम दिलाती है (Benefits in fever)
मिली लता कस्तूरी के ताजे पत्र-स्वरस को पिलाने से ज्वर का शमन होता है।
योनिरोग में लाभदायक है (Benefits for Vaginal Diseases) –लता कस्तूरी पत्र तथा मूल से प्राप्त पिच्छिल पदार्थ को योनि में लगाने से योनिरोगों में लाभ होता है।
शुक्रमेह-लता कस्तूरी बीज चूर्ण का सेवन कराने से शुक्रमेह में लाभ होता है।
लता कस्तूरी काण्डत्वक् को पीसकर लगाने से क्षत, रोमकूपशोथ तथा व्रण में लाभ होता है।
प्रमेह में फायदेमंद है (Benefits for Diabetes) –लता कस्तूरी मूल तथा पत्र का क्वाथ बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पिलाने से प्रमेह में लाभ होता है।